वोडाफ़ोन-आइडिया और एयरटेल की 'दुकान बंद' हुई तो क्या होगा?

दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती स्मार्टफ़ोन मार्केट का ताज लंबे समय तक भारत के सिर रहा मगर देश की टेलिकॉम कंपनियां अब एक नई चुनौती का सामना कर रही हैं.

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफ़ोन-आइडिया और एयरटेल से कहा है कि वे लाइसेंस फ़ीस और ब्याज़ के रूप में 13 अरब डॉलर यानी लगभग 83,000 करोड़ रुपये की रकम अदा करें.

इस फ़ीस को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू या एजीआर कहा जाता है. टेलिकॉम डिपार्टमेंट और टेलिकॉम कंपनियों के बीच 2005 से ही एजीआर को लेकर विवाद है.

टेलिकॉम कंपनियां जो पैसा कमा रही हैं, उनका एक हिस्सा उन्हें टेलिकॉम विभाग को देना है. यही एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू या एजीआर है.

कंपनियां चाहती हैं कि केवल टेलिकॉम बिज़नेस से होने वाली कमाई को एजीआर माना जाए जबकि सरकार का कहना है कि ग़ैर टेलिकॉम बिज़नेस जैसे परिसंपत्तियों की बिक्री या डिपाजिट्स पर मिलने वाले ब्याज़ को भी इसमें गिना जाए.

24 अक्तूबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर को लेकर टेलिकॉम डिपार्टमेंट की दी गई परिभाषा को बरक़रार रखा और कंपनियों को कहा कि अपना बकाया चुकाएं.

टेलिकॉम कंपनियां अभी भी कोशिश में हैं कि इस रकम को अदा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और मोहलत ली जाए.

उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की लॉबीइंग की है. वोडाफ़ोन आइडिया और एयरटेल दोनों ने कहा है कि उनके पास फ़ीस जमा करने लायक पैसे नहीं हैं.

वोडाफ़ोन आइडिया के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने तो यह कह दिया कि अगर सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो उसे 'दुकान बंद' करनी पड़ेगी.

दूरसंचार मंत्री से मिलने के बाद भारती एंटरप्राइज़ेज़ के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने पत्रकारों से कहा, "एजीआर की बकाया रकम अभूतपूर्व संकट है."

हालांकि, उन्होंने दूसरंचार विभाग को आश्वस्त किया है कि कंपनी 17 मार्च तक अपना बकाया चुका देगी.

वोडाफ़ोन को लगभग 283 अरब रुपये लाइसेंस फ़ीस के चुकाने हैं. वोडाफ़ोन आइडिया ने 17 फ़रवरी तक 35 अरब रुपये चुका दिए थे.

एक्सपर्ट कहते हैं कि वोडाफ़ोन-आइडिया के लिए पूरी रकम चुकाना बहुत मुश्किल रह सकता है. इसकी पैरंट कंपनियों, वोडाफ़ोन और आदित्य बिड़ला ग्रुप, ने कहा है कि वे भारत में और निवेश नहीं करेंगी.

एयरटेल को लाइसेंस फ़ीस के रूप में 216 अरब रुपये चुकाने हैं. उसने भी कुछ पैसे 17 फ़रवरी तक दिए हैं. एयरटेल का कहना है कि वह बकाया रकम का ख़ुद आकलन कर रहा है और 17 मार्च तक चुका देगा.

टाटा टेलिसर्विसेज को भी काफ़ी रकम देनी है मगर उसके ग्राहक काफ़ी कम हैं. जियो की देनदारी भी कम है क्योंकि उसने 2016 से ही कारोबार शुरू किया है.

असल चिंता यह है कि कहीं इस फ़ीस के चक्कर में कोई कंपनी बंद न हो जाए. वोडाफ़ोन आइडिया आर्थिक तौर पर ज़्यादा संवेदनशील है क्योंकि इसके 33 करोड़ 60 लाख ग्राहकों पर असर पड़ेगा. इसकी तुलना में एयरटेल के पास 32 करोड़ 70 लाख ग्राहक हैं जबकि जियो के पास 36 करोड़ 90 लाख.

केयर रेटिंग्स के डिप्टी जनरल मैनेजर गौरव दीक्षित कहते हैं, "ग्राहकों के पास अन्य टेलिकॉम कंपनियों में अपना नंबर पोर्ट करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा. और फिर इन ग्राहकों को लेने वाली दूसरी कंपनियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा. इससे उनकी सर्विस की क्वॉलिटी प्रभावित होगी."

इस पूरे प्रकरण ने इन कंपनियों की वित्तीय हालत पर रोशनी डाली है. विशेषज्ञों का कहना है कि टेलिकॉम कंपनियों को अपनी सेवाओं का दाम बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ेगा.

ट्विमबिट में टेलिकॉम एनालिस्ट मीनाक्षी कहती हैं, "2019 के दिसंबर की शुरुआत में एयरटेल, वोडाफ़ोन आइडिया और जियो ने अपने बंडल वाले प्रीपेड पैक की दरों में 14 से 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी. यह पिछले तीन सालों में पहला मौक़ा था जब कंपनियों ने टैरिफ़ बढ़ाए."

"दाम बढ़ाने की यह रणनीति सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसिसिएशन ऑफ़ इंडिया (COAI) के सुझाव के अनुरूप है. COAI का कहना है कि अगर इंडस्ट्री को अपनी वित्तीय हालत ठीक रखनी है तो प्रति यूज़र मिलने वाला राजस्व बढ़ाकर 300 रुपये तक करना होगा."

COAI के महानिदेशक राजन मैथ्यूज़ ने बीबीसी से कहा, "कई ग्राहक अभी भी 2जी नेटवर्क इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर वोडाफ़ोन को मार्केट से हटना पड़ा तो वे 4जी डेटा इस्तेमाल करेंगे. जियो के पास 2G नहीं है और एयरटेल के पास इतनी संख्या में ग्राहकों को अपने यहां जगह लायक संसाधन नहीं हैं."

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