कितनी मुश्किल में हैं इसराइली पीएम नेतन्याहू
इसराइल की पुलिस ने कहा है कि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की जांच करने पर पता चला है कि उन्हें धोखाधड़ी और रिश्वत के मामले में अभियुक्त बनाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
इसराइल में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "नेतन्याहू के ख़िलाफ़ कई मामलों में जांच जारी है. पुलिस ने ऐसे चार में से तीन मामलों में रिपोर्ट दर्ज की है और कहा है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. मगर यह फ़ैसला अटॉर्नी जनरल को करना है कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ आगे अदालती कार्रवाई करनी है या नहीं."
नेतन्याहू पर बेज़ेक़ नाम की एक टेलिकॉम कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव करने का भी आरोप है. कथित तौर पर यह बदलाव इसलिए किए गए ताकि बदले में एक न्यूज़ वेबसाइट पर उनकी और उनकी पत्नी की ज़्यादा सकारात्मक कवरेज हो.
ऐसे में पुलिस को मुक़दमा चलाने लायक सबूत मिलना नेतन्याहू की मुश्किलों को बढ़ा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "अटॉर्नी जनरल ने पिछले कुछ मामलों में बयान नहीं दिया है मगर इस मामले को काफ़ी गंभीर माना जा रहा है. रविवार को नेतन्याहू जब कैबिनेट मीटिंग में गए तो उनके मंत्रियों ने उन्हें समर्थन दिया. इसके जवाब में नेतन्याहू ने कहा कि आप लोग इस मामले को लेकर ज़्यादा ही गंभीर हो रहे हैं मगर यह इतना गंभीर नहीं जितना आप समझते हैं."
सरकार में अपने सहयोगियों को भले ही नेतन्याहू भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हों मगर उनकी सरकार मज़बूत स्थिति में नहीं दिख रही है.
पिछले दिनों ही ग़ज़ा में संघर्ष विराम करने के नेतन्याहू के फ़ैसले से नाराज़ उनके रक्षा मंत्री एविदगोर लिबरमैन ने इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद से उनकी सरकार अल्पमत में आने से बाल-बाल बची हुई है.
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, "यहां पर नेतन्याहू की गठबंधन वाली सरकार काफ़ी कमज़ोर हो गई है. उसे 120 में से मात्र 61 सदस्यों का समर्थन हासिल है. ऐसे में अगर अटॉर्नी जनरल कहते हैं कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ मामले को आगे बढ़ाया जाना चाहिए तो सरकार पर ख़तरा मंडरा सकता है."
इसराइल में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "नेतन्याहू के ख़िलाफ़ कई मामलों में जांच जारी है. पुलिस ने ऐसे चार में से तीन मामलों में रिपोर्ट दर्ज की है और कहा है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. मगर यह फ़ैसला अटॉर्नी जनरल को करना है कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ आगे अदालती कार्रवाई करनी है या नहीं."
नेतन्याहू पर बेज़ेक़ नाम की एक टेलिकॉम कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव करने का भी आरोप है. कथित तौर पर यह बदलाव इसलिए किए गए ताकि बदले में एक न्यूज़ वेबसाइट पर उनकी और उनकी पत्नी की ज़्यादा सकारात्मक कवरेज हो.
ऐसे में पुलिस को मुक़दमा चलाने लायक सबूत मिलना नेतन्याहू की मुश्किलों को बढ़ा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, "अटॉर्नी जनरल ने पिछले कुछ मामलों में बयान नहीं दिया है मगर इस मामले को काफ़ी गंभीर माना जा रहा है. रविवार को नेतन्याहू जब कैबिनेट मीटिंग में गए तो उनके मंत्रियों ने उन्हें समर्थन दिया. इसके जवाब में नेतन्याहू ने कहा कि आप लोग इस मामले को लेकर ज़्यादा ही गंभीर हो रहे हैं मगर यह इतना गंभीर नहीं जितना आप समझते हैं."
सरकार में अपने सहयोगियों को भले ही नेतन्याहू भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हों मगर उनकी सरकार मज़बूत स्थिति में नहीं दिख रही है.
पिछले दिनों ही ग़ज़ा में संघर्ष विराम करने के नेतन्याहू के फ़ैसले से नाराज़ उनके रक्षा मंत्री एविदगोर लिबरमैन ने इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद से उनकी सरकार अल्पमत में आने से बाल-बाल बची हुई है.
वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, "यहां पर नेतन्याहू की गठबंधन वाली सरकार काफ़ी कमज़ोर हो गई है. उसे 120 में से मात्र 61 सदस्यों का समर्थन हासिल है. ऐसे में अगर अटॉर्नी जनरल कहते हैं कि नेतन्याहू के ख़िलाफ़ मामले को आगे बढ़ाया जाना चाहिए तो सरकार पर ख़तरा मंडरा सकता है."
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